OPINION: सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि सरकार और लोगों के बीच का रिश्ता चुनाव के नतीजों के बाद खत्म नहीं हो जाता है बल्कि वास्तव में उस वक्त शुरू होता है. उनके इस कथन के मुताबिक उनकी सरकार अच्छी तरह समझती है कि सामूहिक प्रयास के बिना समग्र विकास संभव नहीं है. पीएम के मुताबिक हर देश की विकास यात्रा में एक समय आता है जब वो राष्ट्र खुद को एक नए छोर से परिभाषित करता है. इसके अलावा वो नए संकल्पों के साथ खुद को आगे बढ़ाता है. भारत के लिए वो समय अब आ गया है.
- (स्वाति लाहोटी)
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास. इन आठ शब्दों में मानो संपूर्ण संविधान और उसकी आत्मा का सार निहित है. ये आठ शब्द संविधान की भावना का सबसे सशक्त प्रकटीकरण हैं, ऐसा पीएम मोदी जी का भी विश्वास है. सबको साथ ले कर चलना है, सबके साथ चलना है. तरक्की सबकी होनी है, इसलिए प्रयास भी सबको करना है. कितना पवित्र, कितना ऋजु भाव है. साथ ही, कितना ऊर्जावान भी. अंग्रेजी भाषा में जिसे सिनर्जी बोलते हैं जहां एक और एक, दो नहीं बल्कि ग्यारह होते हैं, जहां एक टीम जब तालमेल के साथ खेलती है तो अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा देती है. ऐसा ही एक मंजर देखा था पूरी दुनिया ने 1983 में जब कपिल देव की भारतीय टीम ने दिग्गज वेस्ट इंडियन टीम की नाक में नकेल डाल कर क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता था. उस जीत का हीरो कोई एक खिलाड़ी नहीं था बल्कि पूरी टीम थी और था उनका सांझा प्रयास.
ऐसा ही दृश्य देखने को मिलता है विष्णु शर्मा कृत ‘पंचतंत्र’ की भोली-भाली कथाओं में जहां निरीह पक्षी, एकजुट हो कर बहेलिए के जाल को ही ले कर उड़ जाते हैं या फिर जंगल के राजा शेर पर भी भारी पड़ जाते हैं. साथ में मिल कर कोशिश करने से बड़े और जटिल काम भी चुटकियों में हो जाते हैं. मंशा ये है कि किसी भी काम को मिलजुल के करने से सफलता की संभावना तो कई गुना बढ़ ही जाती है, साथ ही, सफर भी खुशनुमा हो जाता है.
संगच्छध्वं संवदध्वं
प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में ‘साथ’ या ‘समूह’ में कार्य करने को बहुत महत्त्व दिया गया है.
ऋग्वेद के इस श्लोक में साथ में चलने को, दैवीय गुण का दर्जा दिया गया है.
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते.
अर्थात- हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों.
प्राचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं. हम समष्टि भावना से प्रेरित होकर सभी कार्यो को साथ-साथ करें, जैसा जगत् की समस्त देवशक्तियां करती हैं, उन्हीं का हम भी अनुकरण करें. और तो और, हमारा भोजन मंत्र भी कुछ इसी तरह की भावना को प्रोत्साहित करता है.
ॐ सहनाववतु. सह नौ भुनक्तु. सह वीर्यं करवावहै.
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः.
अर्थात- ओम! हे परमेश्वर! हम छात्र और शिक्षक दोनों की एक साथ रक्षा करें, हम छात्र और शिक्षक दोनों का एक साथ-साथ पोषण करें, हम दोनों साथ मिलकर महान ऊर्जा और शक्ति के साथ कार्य करें एवं विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हमारी बुद्धि तेज हो, हम एक दूसरे से ईर्ष्या न करें.
हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रंथ हैं – उपनिषद्. उपनिषद् भारतीय सभ्यता की अमूल्य धरोहर हैं. उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं. उपनिषदों को स्वयं भी ‘वेदान्त’ कहा गया है. उपनिषद् में ऋषि और शिष्य के बीच बहुत सुंदर और गूढ संवाद है जो पाठक को वेद के मर्म तक पहुंचाता है. उपनिषद् शब्द का शाब्दिक अर्थ है- ‘समीप उपवेशन’ या साथ बैठना (ब्रह्म विद्या की प्राप्ति के लिए शिष्य का गुरु के पास बैठना). तो हमारे उपनिषद् भी गुरु के साथ बैठ कर अर्जित किया गया ज्ञान हैं. साथ में रह कर ज्ञान का अर्जन करना, कितना सुंदर भाव है.
भारत की विदेश नीति भी इसी दर्शन पर आधारित
भारत की विदेश नीति खुली सोच और व्यवहारिकता पर आधारित ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सूत्र पर आधारित है तथा जटिल मुद्दों के समाधान के लिए इसमें ‘सबका प्रयास’ के तत्व भी समाहित हैं.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कुछ समय पहले कहा था, ‘हमारा संदेश दुनिया को सघनता के साथ जोड़ने का है और इसमें स्वभाविक तौर पर अपने लोगों को फायदा पहुंचाना एवं वैश्विक कल्याण, विकास एवं सुरक्षा में भी योगदान देना है.’ जयशंकर ने कहा कि संपर्क बढ़ाने और सहयोग को प्रोत्साहित करने में भारतीय निवेश उल्लेखनीय है, चाहे यह कोविड के दौरान हो या वर्तमान आर्थिक चुनौतियों को लेकर हो. उन्होंने कहा कि भारत ने अपने पड़ोसियों के लिए आगे बढ़कर कम किया है और देश ऐसा करना जारी रखेगा.
कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने दुनिया की मदद करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक जैसी कंपनियों ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन जैसी कोविड-19 वैक्सीनों का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. भारत ने दुनिया के कई देशों को कोविड-19 वैक्सीन दिए हैं. 2022 के फरवरी तक, भारत ने कोवैक्स सुविधा और द्विपक्षीय साझेदारी के माध्यम से अन्य देशों को 100 मिलियन से अधिक वैक्सीन डोज प्रदान किए हैं. समग्रतः, भारत ने वैक्सीन उत्पादन और वितरण में योगदान देकर, चिकित्सा सहायता प्रदान करके और विशेषज्ञता साझा करके, कोविड-19 के वैश्विक संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है .
महात्मा गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत
गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के पीछे भी सब के समग्र विकास की भावना निहित है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1903 में दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया था. उनका मानना था कि पूंजी का असली मालिक पूंजीपति नहीं बल्कि पूरा समाज है, पूंजीपति तो केवल उस संपत्ति का रखवाला भर है. गांधी जी का यह मानना था कि जो संपत्ति पूंजीपतियों के पास है, वह उनके पास समाज की ‘धरोहर’ के रूप में है. गांधी जी का कहना था कि पूंजीवाद के कारण दुनिया भर में बेरोजगारी बढ़ी है और श्रम की महत्ता कम हुई है. बेरोजगारी ने समाज की सबसे छोटी इकाई को कमजोर किया है. धनवानों को अपनी संपत्ति को समाज कल्याण में खर्च करना चाहिए और आम जनता को अपना साझीदार बनाना चाहिए अन्यथा एक दिन हिंसक और रक्तरंजित क्रांति हो जाएगी. महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत के अनुसार जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक संपत्ति एकत्रित करता है, उसे केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संपत्ति के उपयोग करने का अधिकार है, शेष संपत्ति का प्रबंध उसे एक ट्रस्टी की हैसियत से देखभाल कर समाज कल्याण पर खर्च करना चाहिए.
कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी
कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी का सिद्धांत भी सब के विकास की भावना से प्रेरित है. कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी का मतलब कंपनियों को उनकी सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में बताना है. भारत में कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) के नियमों के अनुसार, जिन कम्पनियां की सालाना नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए या सालाना आय 1000 करोड़ की या सालाना लाभ 5 करोड़ का हो तो उनको CSR पर खर्च करना जरूरी होता है. यह खर्च तीन साल के औसत लाभ का कम से कम 2% होना चाहिए. दूसरे शब्दों में, कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी, कंपनियों को समाज के प्रति उनके कर्त्तव्य के निर्वहन के लिए बनाया गया कानून है. आप खुशी से तरक्की कीजिए लेकिन साथ में, देश, समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी निभाइए.
यहां कार्ल मार्क्स का जिक्र करना भी उपयुक्त होगा. कार्ल मार्क्स ने ऐसे समाज की परिकल्पना की थी जहां हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार नहीं बल्कि उसकी जरूरतों के अनुसार संसाधन मुहैया कराये जाएं. ‘हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार से हर व्यक्ति की उसकी जरूरतों के अनुसार’, मार्क्स के इस सिद्धांत की उपादेयता के बारे में विचार-विमर्श, इस लेख के विषय से इतर होगा. मार्क्स के बारे में बात करने की मंशा बस इतनी ही है कि ‘सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास’ की मोदी जी की नीति, उन मानकों पर भी खरी उतरती है जो हमारे देश के संस्थागत ढांचे से मेल नहीं खाते.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि सरकार और लोगों के बीच का रिश्ता चुनाव के नतीजों के बाद खत्म नहीं हो जाता है बल्कि वास्तव में उस वक्त शुरू होता है. उनके इस कथन के मुताबिक उनकी सरकार अच्छी तरह समझती है कि सामूहिक प्रयास के बिना समग्र विकास संभव नहीं है. पीएम मोदी ने कहा कि आज गरीब से गरीब को भी क्वालिटी इंफ्रास्ट्रक्चर तक वही पहुंच मिल रही है, जो कभी साधन संपन्न लोगों तक सीमित थी. आज लद्दाख, अंडमान और नॉर्थ ईस्ट के विकास पर देश का उतना ही फोकस है, जितना दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों पर है. पीएम के मुताबिक हर देश की विकास यात्रा में एक समय आता है जब वो राष्ट्र खुद को एक नए छोर से परिभाषित करता है. इसके अलावा वो नए संकल्पों के साथ खुद को आगे बढ़ाता है. भारत के लिए वो समय अब आ गया है.
सबके कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले राष्ट्र नायक से देश की जनता का बस यही कहना है, ‘मोदी जी आप इस महान यज्ञ में लगे रहो, इस देश के 140 करोड़ लोग आपके साथ हैं.’
(स्वाति लाहोटी एक लेखिका हैं, जिन्होंने ‘The Wind Beneath His Wings’ नामक पुस्तक लिखी है और कई पुस्तकों का अनुवाद किया है. उनके रुझानों में भारतीय इतिहास और समकालीन राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी करना शामिल है.)
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